Wednesday, August 18, 2010

Akal bari ya Bhains Found it on the net...

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फंसा हु‌आ है मामला,अक्ल बड़ी या भैंस
अक्ल बड़ी या भैंस,दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवा‌ई-----

मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी ।
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा ॥
को‌ई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे ।
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुःख पाये ॥
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरबार सी.एम. बनवायो ।

तुमहू भैंस का चारा खा‌ओ- बीवी को सी.एम. बनवा‌ओ ॥
मोटी अकल मन्दमति हो‌ई- मोटी भैंस दूध अति हो‌ई ।
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का को‌ई बॉयफ्रेन्ड ना होये ॥
अकल तो ले मोबा‌इल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे ।
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे ॥

भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती ।
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये ॥
शक्‍तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी ।
अकलमन्द को को‌ई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने ॥
जाकी अकल में गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये ।
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी ॥
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पड़ते जूते ।